Kamini Roy Google Doodle: जानें कौन थी कामिनी रॉय जिसका गूगल ने बनाया है खास डूडल
कामिनी रॉय (kamini roy) के जन्मदिन के मौके पर गूगल ने डूडल (kamini roy google doodle) बनाकर उन्हें याद किया है। ब्रिटिश भारत की प्रमुख बंगाली कवि, नारीवादी और सामाजिक कार्यकर्ता कामिनी रॉय पर बनाया गया गूगल का डूडल बड़ा खास है। इस डूडल में गूगल ने अपने logo के तीसरे ‘O’ के स्थान पर कामिनी रॉय को रखा है और उनके पीछे महिलाएं खड़ी है क्योंकि कामिनी ने उस समय महिला शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम किया था।
कामिनी रॉय का जन्म 12 अक्टूबर 1864 को बंसदा, बंगाल में हुआ था। अब यह स्थान बांग्लादेश में है। इनके पिता जज और लेखक थे। आज बंगाल की इस मशहूर साहित्यकार व कवयित्री की 155 वीं जयंती है।
कामिनी ने अपनी डिग्री कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की थी। यह कादंबिनी गांगुली के बाद देश की दूसरी महिला स्नातक थी। कामिनी की शादी 1894 में केदारनाथ रॉय से हुई थी।
कामिनी की शिक्षा के समय महिला शिक्षा लगभग नगण्य थी एवं लोग महिलाओं और लड़कियों को पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे। ऐसे में कामिनी ने महिला शिक्षा के क्षेत्र में अहम काम किया और महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया। ऐसे में वह उस समय एक नारीवादी थी जिस समय महिला शिक्षा को वर्जित माना जाता था।
वह अपने कवि जीवन में रविंद्र नाथ टैगोर और संस्कृत की साहित्यिक रचनाओं से प्रेरित थी। उन्हें अपनी पढ़ाई के दौरान कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक हासिल हुआ था।
1889 में उनका पहला संग्रह आलो छैया प्रकाशित हुआ था जो छंदों के बारे में था।
कामिनी रॉय का जीवन
अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद कामिनी ने एक शिक्षिका की नौकरी ज्वाइन की। इसके साथ उन्होंने अपने लेखन कार्य को जारी रखा।
उन्होंने 1926 में बंगाली महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाने में भी काम किया। उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए, कामिनी रॉय को 1929 में कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा जगत्तारिनी पदक से सम्मानित किया गया।
वह 1930 में बंगाली साहित्य सम्मेलन की अध्यक्ष बनी और 1932-33 के बीच बंगीय साहित्य परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में भी काम किया।
Google ने आज 155वें जन्मदिन पर कामिनी रॉय को एक खूबसूरत डूडल से सम्मानित किया है।
कामिनी रॉय की रचनाएँ
कामिनी रॉय पेशे से एक कवियत्री व लेखिका थी.
उनकी प्रमुख साहित्यिक रचनाएं निम्न है: महश्वेता, दीप ओ धूप, जीबन पाथेय, निर्माल्या, पुंडरीक, माल्या ओ निर्माल्या, पौराणिकी और अशोक संगीत।