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क्रिकेट में उपयोग होने वाली तकनीकें

क्रिकेट दुनिया के सबसे पॉपुलर खेलों में से एक है। पुराने जमाने की क्रिकेट तथा आज के क्रिकेट में काफी बदलाव आ चुके है और उसका कारण है ‘टेक्नोलॉजी’। इस पोस्ट में हम इन्हीं Top Cricket Technologies के बारे में जानेंगे जिन्होंने क्रिकेट को आसान बना दिया है।

भारत में हर उम्र वर्ग की क्रिकेट के प्रति दीवानगी किसी से छिपी नहीं है। क्रिकेट मैचों के दौरान हर तरफ कोई ना कोई क्रिकेट के बारे में बात करता जरूर दिखता है और जब वर्ल्ड कप, आईपीएल जैसे अवसर हो तो क्रिकेट का रंग हर जुबान पर चढ़ जाता है।

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क्रिकेट को इस स्तर तक पहुंचाने में टेक्नोलॉजी का अहम योगदान है। 19वीं सदी तक क्रिकेट में underhand बॉलिंग की जाती थी लेकिन 1862 में एक खिलाड़ी के विरोध के कारण इसे बदला गया और बॉलर्स को overhand balling जरूरी हो गया।

इस प्रकार क्रिकेट में धीरे-धीरे कई बदलाव आते गए और अब क्रिकेट में निष्पक्ष निर्णय (accurate results) के लिए टेक्नोलॉजी अहम कड़ी बन गयी है जैसा कि कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय खेलों में देखने को मिलता है।

Cricket में Use होने वाली Advanced Technology in Hindi

1. स्निकोमीटर (SnickoMeter)

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क्रिकेट में स्निकोमीटर उस समय काम आता है जब बॉल तथा बैट के मध्य एज यानि किनारा लगा हो।

मैदान पर दर्शकों के शोर के चलते फील्ड अंपायर के लिए बॉल तथा बैट के हल्के किनारे को सुनना आसान नहीं होता है जिस वजह से अंपायर को निर्णय देने में गलती हो सकती है। यहां काम आता है Snickometer. यह बॉल तथा बैट के मध्य हल्के से संपर्क को भी रिकॉर्ड कर सकता है।

इस तकनीक में स्टंप के दोनों ओर बेहद संवेदनशील माइक्रोफोन लगाये जाते हैं जो साउंड वेव्स को capture करते है। इससे फील्ड अंपायर के रेफरल पर थर्ड अंपायर को इसका पता लगाना आसान हो जाता है कि बॉल बैट से लगी है या कहीं और।

2. हॉटस्पॉट (Hot Spot)

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HotSpot क्रिकेट में एडवांस तकनीक है जो आजकल लगभग हर मैच में इस्तेमाल की जाती है।

इससे अंपायरों को यह देखने में आसानी होती है कि गेंद बल्ले से टकराई है या नहीं।

यह तकनीक इंफ्रारेड कैमरों पर आधारित है जो मैच के दौरान मैदान में लगे रहते हैं। जब गेंद का बल्ले या कहीं और संपर्क होता है तो यह कैमरे हिट फ्रिक्शन उत्पन्न करते हैं और नेगेटिव इमेज कैप्चर करते हैं।

सरल शब्दों में कहें तो इसमें ब्लैक एंड व्हाइट रिव्यू दिखाया जाता है। अगर गेंद बल्ले, ग्लव्स या शरीर के अन्य किसी भाग पर टच होती है तो वहां पर white spot बन जाता है और अंपायर को आसानी से पता चल जाता है कि गेंद बैट से लगी है या नहीं।

इस तकनीक को snickometer का उन्नत भाग कहा जा सकता है हालांकि क्रिकेट मैचों में स्निकोमीटर तथा हॉटस्पॉट दोनों का प्रयोग किया जाता है।

स्निकोमीटर तथा हॉटस्पॉट में अंतर यह है कि स्निकोमीटर साउंड वेव के आधार पर परिणाम निकलता है जबकि हॉटस्पॉट हिट सिग्नेचर के आधार पर।

क्रिकेट में HotSpot तथा SnickoMeter तकनीक एलबीडब्ल्यू जैसे निर्णय देने में बहुत हेल्पफुल साबित होती है।

3. एलईडी स्टम्प्स (LED Stumps)

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इस तकनीक में स्टम्प तथा बेल्स में एलईडी लाइट्स लगी होती है जो गेंद के विकेट से टकराने पर जलती या फ्लैश होती है।

रन आउट तथा विकेटकीपर के द्वारा स्टंप आउट के समय अंपायर के लिए डिसीजन लेना आसान हो जाता है कि बेल्स स्टम्प से गिरी है या नहीं।

एलईडी स्टंप्स सेट महंगे होने के कारण इनका ज्यादा उपयोग नहीं किया जाता है लेकिन वर्ल्ड कप, आईपीएल, स्पेशल सीरीज जैसे क्रिकेट इवेंट्स में इस प्रकार के स्टंप काम में लिए जाते हैं।

4. स्टम्प कैमरा (Stump Camera)

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स्टंप कैमरा एक छोटा कैमरा होता है जो मिडिल स्टंप में लगाया जाता है। यह कैमरा बल्लेबाज के बोल्ड होने या रन आउट के समय यूनिक तरीके से एक्शन रिप्ले दिखाता है।

स्टंप कैमरे के अलावा स्टंप के पीछे एक माइक भी होता है जो क्रिकेट में कई बार हेल्पफुल होता है।

अगर आप क्रिकेट के फैन है तो आपने स्टंप माइक के जरिए खिलाड़ियों की बातें या उनके टकराव को जरूर सुना होगा।

5. हॉक आई (Hawk Eye)

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क्रिकेट में इस टेक्नोलॉजी को 2001 में लाया गया था और तब से यह क्रिकेट का अहम पार्ट बन चुकी है।

Hawk Eye तकनीक द्वारा गेंद (ball) के exact रास्ते को मापा जाता है कि गेंद बाउंस होने के बाद (टप्पा खाने के बाद) स्टम्प पर जाएगी या नहीं।

इस तकनीक से अंपायरों को एलबीडब्ल्यू डिसीजन देने में आसानी हो जाती है क्योंकि इससे यह पता चल जाता है कि गेंद बल्लेबाज के पैड पर लगने के बाद stump पर जा रही थी या नहीं।

स्टेडियम में अलग-अलग स्थानों पर लगे 6 कैमरों से 3डी तकनीक द्वारा ball का रास्ता ट्रैक किया जाता है।

हॉक आई को क्रिकेट के अलावा टेनिस, फुटबॉल जैसी कई अन्य खेलों में भी इस्तेमाल किया जाता है।

6. स्पाइडर कैमरा (Spider Cam)

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एक समय था जब क्रिकेट मैचों के टेलीकास्ट के लिए बहुत कम कैमरों का प्रयोग किया जाता था लेकिन आज टेक्नोलॉजी के कारण क्रिकेट में बहुत सारे अलग-अलग कैमरे यूज किए जाते हैं और उन्हीं में से एक है ‘स्पाइडर कैम’।

इसमें मैदान के ऊपर एक केबल्स का सिस्टम होता है जो कैमरे को क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर तरीकों से घुमा सकता है।

यह मैच को अलग-अलग एंगल से दिखाकर प्रसारण को आकर्षक बनाता है। सर्वप्रथम इसका प्रयोग आईपीएल में किया गया था।

कई मैचों में इनकी जगह ड्रोन का भी use किया जाता है।

7. बॉल स्पीड By स्पीड गन

क्रिकेट में इस तकनीक का इस्तेमाल बॉल की स्पीड को मापने के लिए किया जाता है।

स्पीड गन को साइट स्क्रीन के पास लगाया जाता है जो सूक्ष्म तरंगों द्वारा आंकड़े प्राप्त कर बॉल की स्पीड को मेजर करती है।

8. Ball Spin RPM

क्रिकेट मैच में जब स्पिनर बॉलिंग करता है तो इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। यह बॉल के रोटेशन को ट्रैक करती है।

इसकी सहायता से यह पता लगाया जाता है कि गेंद पिच पर कितनी स्पिन हो रही है तथा बॉल के स्पिन की गति कितनी है।

9. सुपर सॉपर (Super Sopper)

क्रिकेट मैच में टीम के players के अलावा एक और player होता है और मैच पर उस प्लेयर की मेहरबानी होनी जरूरी है। उसका नाम है ‘इंद्र देवता’।😊

अगर मैदान पर इंद्र देवता बरस जाते है यानि बारिश हो जाती है तो गीले मैदान को सुखाने के लिए Super Sopper Machine का use किया जाता है।

इसकी सहायता से मैदान को बारिश होने पर जल्दी से ड्राई किया जा सकता है।

10. सुपर स्लो मोशन (Super Slow Motion)

बल्लेबाज द्वारा खेले गए शॉट, अंपायर डिसीजन तथा क्रिकेट बारीकियों को जानने के लिए रिप्ले देखते है और रिप्लाई के लिए स्लो मोशन कैमरा का इस्तेमाल किया जाता है।

सुपर स्लो मोशन कैमरा मैच को बारीकी से कैप्चर करने के लिए सामान्य कैमरे की तुलना में प्रति सेकंड कई गुना ज्यादा फ्रेम रिकॉर्ड करते हैं।

11. पिच विजन (Pitch Vision)

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यह एक बहुत उपयोगी cricket technology है। इसकी सहायता से खिलाड़ियों को अपने प्रदर्शन को देखने तथा सुधारने का मौका मिलता है।

यह technology बॉलर की लाइन, लेंथ, बाउंस, फूट पॉजिशन को ट्रैक करती है यानि बॉलर के balling map को दिखाती है।

साथ ही बल्लेबाज इससे अपने शॉट सलेक्शन, कमजोरियों को भांपते है और उन्हें improve करने की कोशिश करते है।

12. बॉलिंग मशीन (Balling Machine)

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एक बॉलिंग मशीन बल्लेबाज को बैटिंग प्रैक्टिस में हेल्प करती है और शॉट सिलेक्शन बेहतर बनाती है क्योंकि बल्लेबाज बॉलिंग मशीन के जरिए ball को एक ही line, length तथा गति से कई बार खेल सकता है।


क्रिकेट में टेक्नोलॉजी को हम game changer कह सकते हैं क्योंकि कई बार डीआरएस जैसे अवसर पर टेक्नोलॉजी मैच के मोड़ को बदल देती है यानि मैच को टर्निंग प्वाइंट पर ला देती है।

क्रिकेट दिन-प्रतिदिन मॉडर्न होता जा रहा है और इसमें नई-नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। क्रिकेट फैन के नाते आपको cricket technologies को जरूर जाननी चाहिये।

I Hope आपको यह क्रिकेट टेक्नोलॉजी (Cricket Technology in hindi) से जुड़ी पोस्ट जानकारीपूर्ण लगी होगी और इससे आपने क्रिकेट से जुड़ा कुछ न कुछ नया जरूर जाना होगा।

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